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एके समयी भगवान बुद्ध उकट्ठ आणी सेतब्ब ह्या दोन नगरांच्या मधील राज रस्त्यापर्यंत पोहोचले असता, त्यांना द्रोण नावाचा एक ब्राह्मण त्यांच्यासारखाच प्रवास करत असताना भेटला. अचानक भगवंतांनी रस्ता सोडला व ते एका वृक्षातळी पद्मासन करुन बसले. भगवंतांच्या पावलांमागुन जात
असणार्या त्या ब्राह्मण द्रोणाला, त्या तेजस्वी, सुंदर, संयमी, शांत आणी संयत
मनाच्या आणी सामर्थ्यशाली मनाच्या भगवंताचे दर्शन झाले.
भगवंता जवळ जाऊन तो म्हणाला,
द्रोण ब्राह्मण : आदरणीय महाशय आपण
देव तर नाहीत?
भगवान बुद्ध : नाही. ब्राह्मणा, मी खरोखर
देव नाही.
द्रोण ब्राह्मण : आपण गंधर्व तर नव्हेत? भगवान बुद्ध : नाही, नाही! ब्राह्मणा मी गंधर्व नाही!
द्रोण ब्राह्मण : मग आपण यक्ष तर
नव्हेत?
भगवान बुद्ध: नाही, नाही! ब्राह्मणा , मी यक्ष नव्हे. द्रोण ब्राह्मण : तर मग आपण मनुष्य आहात काय?
भगवान बुद्ध: नाही ब्राह्मणा मी मनुष्यही नाही. भगवंतांची अशी उत्तरे ऐकल्यावर
तो ब्राह्मण द्रोन म्हणाला, " तुम्हाला तुम्ही देव आहात काय? गंधर्व आहात काय? यक्ष किंवा मनुष्य आहात काय असे विचारले असता आपण नाही म्हणता, तर मग आदरणीय महाशय आपण आहात तरी कोण? त्यावर भगवंतानी स्मित हास्य केले, आणी भगवंत म्हणाले, ' ब्राह्मणा, जोपर्यंत मी माझ्या अंगच्या आसवाचा निरास केला नव्हता तोपर्यंत मी खरोखरच देव, गंधर्व, यक्ष, आणी मनुष्य होतो. पण आता मी आसवापासुन मुक्त झालो आहे, देव, गंधर्व, यक्ष आणी मनुष्य यांच्यासारखा मी रडत नाही. मुळाचे
विच्छेदन करुन बैठकच नाहीशी केलेल्या तालवृक्षासारखा झालो आहे. त्या वृक्षाला जसे अंकुर फुटणार नाहीत, त्याप्रमाणे मला अश्रु येणार नाही. म्हनुण हे ब्राह्मणा तु मला सम्यक संबुद्ध (संपुर्ण जागृत ज्ञानी पुरुष) असे समज
आर्य - अनार्य : वाद - विवाद
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सजीव और निर्जीव ऐसे दो प्रकारों से सृष्टि बनी है, सजीव मे वनस्पती और प्राणियों का समावेश होता है. निर्जीवों से सजीव बने है. सजीव पृथ्वी, आप, तेज और वायु इन चार भौतिक पदार्थों से बने है. भौतिक पदार्थ अनु और रेणु से बने है, विशिष्ट अनुकूल परिस्थिति रहने पर जीवन का निर्माण होता है. जिसे हम चेतना भी कहते है,
जिव का दूसरा नाम चेतना है, अनु-रेनु के आपस मे टकराने से उर्जा होती है. बिजली, हवा, पानी यह भौतिक पदार्थ है. पदार्थो कों किसी ने निर्माण नही किया, उसका विकास हुआ. प्राणियों का भी उसी तरह से विकास हुआ. कोई भी जन्म नही लेता है और कोई न मरता है, जो बदलाव दिखता है वह विकशित रूप है, जिसे हम जन्म या उदय कहते है.
प्राणी अन्न (पृथ्वी), पानी (आप), उष्णता (तेज) और हवा (वायु) से बने है. प्राणी का जन्म होना यानि नया रूप धारण करना है, जब वह हमारे आखों से दिखता है तो हम समजते है की जन्म हुआ, लेकिन वह भ्रम है. अतिशुक्ष्म चीज/प्राणी हमारे आखों से नही दिखते.
हर प्राणी प्रथम सूक्ष्म होते है जब उसे हम देख भी नही सकते, उसमे चेतना, उर्जा, जिव बना होता है, मगर हमारे आखों से नही दिखता इसलिए हम उनका अस्तित्व ध्यान मे नही लेते. यह गलती हमारी है, क्योंकी वह जिव होने पर भी हम उसे देख नही पाते. जो भी जन्मे जैसा लगता है वह सच मे विकसित हुआ होता है, न की जन्मा.
मरना क्या है? चार भौतिक पदार्थों का एक दूसरे से विलग होने कों मरना कहते है. उसमे जिव, चेतना, उर्जा का अभाव होता है. भौतिक रूपों कों हमने विविध नाम दिए है. रूप हमेशा बदलते रहते है तो फिर नामों मे भी परिवर्तन की जरुरी है, मगर हम सूक्ष्म परिवर्तनों कों भूलकर हमारी एक सोच बनाते है. इसलिए हमारे विचारों मे दोष दिखाई देते है.
मानव प्राणी अगर बुरा कर्म करते है तो वह नर्क मे जाता है और अच्छे कर्म करता है तो वह स्वर्ग मे जाता है. ऐसी हमने धारणा बनाई है क्योंकि वह हमारे शास्त्रों मे या धर्म ग्रंथो मे लिखी है. क्या, बिना लिखे कोई भी धर्मग्रन्थ बना है? दुनिया मे जितने भी धर्मग्रन्थ है उसे मानवों ने ही लिखा है. लेकिन हम ईश्वर का नाम सामने करते है. क्या सच कों झूट और झूट कों सच कहना गलत नही है?
जिन मानवों ने धर्मग्रन्थ लिखा है, न उन्होंने स्वर्ग कों देखा और न नर्क कों देखा है. फिर बिना देखे उसकी कल्पना करके सही और गलत धारणा बनाना और उनपर विश्वास करना कितने प्रतिशत उचित है? हमें नर्क की शिक्षा से डराया जाता है, हम डर के मारे धर्मग्रंथों का पालन करते है.
न किसी ने आत्मा देखा, न किसी ने ईश्वर कों देखा और न किसी ने स्वर्ग-नर्क कों देखा है. किन्तु जनता कों लूटने के लिए उन्हें बेवकूफ बनाया जाता है. अज्ञानी गरीब जनता लुटते जाती और सरकार चुपचाप देखते रहती, जिसका परिणाम जो भी होगा उसे ईश्वर के हातों मे सोंपती है. जो लोग भगवान भरोसे है उनका और उनके देश का भविष्य अंधकारमय है,
मानव प्राणियों कों ही नर्क का डर दिखाया जाता है किसी अन्य प्राणियों कों क्यों नही? क्योंकी हम उन्हें नही समझा सकते. जिन्हें मुर्ख बनाया जाता है उसी कों मुर्ख बनाया जाता है. पुरे संसार मे एक ही भगवान है जिनका नाम खुदा है, उन्होंने सजीव और निर्जीव हमारे लिए बनाए है,
हम उनके मालिक है और वे हमारे नोकर है. हम अगर ईश्वर के आदेशों का पालन नही करते है तो नर्क मे जाना पड़ेगा, इस् डर से निजात मिलनी चाहिए इसलिए मंदिर, मज्जिद, चर्चों का निर्माण किया गया है. यह जनता कों ठगने के केंद्र है. यह सामाजिक शोषण करने के लिए मदत करते है, गुनाहगार है, उन्हें उचित शिक्षा मिलनी चाहिए.
मुस्लिम लोगों का कहना है की मारने के बाद हम जन्नत मे जाना चाहिए इसलिए वे इस् जीवन कों जीते है, जीवन तो यही है, इस् जीवन मे जो कर्म करेंगे उनके फल यही जीवन मे मिलते है, जेल मे जाना यानि नर्क मे जाना है. अगले बार कोनसे जन्म जानेवाले है? इसकी सही दिशा किसे भी पता नहीं है किन्तु उसे अपने कल्पना से हम गढ़ लेते है. धार्मिक ठग लोगों कों उचित शिक्षा का प्रावधान होना चाहिए. आर्थिक चोरों कों हम जेल देते है फिर धार्मिक लुटाऊ कों क्यों छोड़ते है?
धर्म के नामपर सामाजिक वातावरण प्रदूषित करना न जनता के हितों मे है औए न देश के हितों मे है. न जाने राजनेता भी सरकारी तिजोरी कों मंदिर-मज्जिद कों खड़ा करने मे मदत क्यों करते है? क्या वे अपराध के श्रेणी मे नही आते? असली धार्मिक लुटारूओं कों जबतक नही पकड़ेंगे तबतक आतंकवाद पर काबू पाना असम्भव है. जो धर्म शिक्षा के नाम पर अज्ञान का प्रचार करते है, उन्हें मदत करने के बजाए कठोर से कठोर शिक्षा मिलनी चाहिए.
भारत मे हजारों सालों से वर्ण व्यवस्था थी तो युरोंप मे वंश व्यवस्था. गोरे लोग और काले लोग इनके बिच वंश संघर्ष काफी समय तक चलते रहा. मार्टिन ल्यूथर किंग ने जीवन भर अपने मानवीय अधिकारों के लिए गोरे लोगों से संघर्ष किया और कहा की वंश यह केवल त्वचा के रंग से पवित्र या अपवित्र साबित नही होता, वैसे ही बाबासाहब आंबेडकर ने भी जन्म के आधार पर वर्णों कों अच्छा या बुरा नही कह सकते, उनके आधार पर मानवीय संघर्ष अनुचित है.
वंश या वर्ण के आधार पर भेदभाव करना और मानवीय समूह मे तनाव निर्माण करना, यह मानवी अस्तित्व कों खतरा है. देश और विदेश मे इनके खिलाफ कानून बने, पर कुछ विषमतावादी लोग अपने कों सच, पवित्र और दूसरों कों झूट, अपवित्र साबित करने का हमेशा प्रयास करते रहते है.
वर्णों कों वंशो से जोड़कर आपस मे यह सिद्ध करने का प्रयास किया गया की
विश्व मे आर्य (विजयी) और अनार्य (पराजई) ऐसे दो समूह बनाने के गलत प्रयास होते रहे. गोरे लोग चमड़ी के आधार पर आर्य और काले लोग अनार्य साबित नही हो सकते. भारतीय लोगों ने भी खुद कों आर्य समजकर, गोरे लोगों से अपना रिस्ता बनाने का प्रयास किया था. उनके लिए पश्चिम के विद्वानों के विचारों का हवाला दिया गया. डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने इस् तरह की भेदभाव पूर्ण नीतिओं कों खत्म करने के उद्धेश से देशी तथा विदेशी विद्वानों के विचारों का खंडन किया.
डॉ बाबासाहब आंबेडकर अपने शोध ग्रन्थ मे लिखते है, "सबसे मानवीय प्रमाण मानव शास्त्रान्वेसण का था. पहला अनुसंधान सर हरबर्ट रिजले ने ई.स.१९०१ मे किया. उनका कथन है की, भारत की चार जातीया (वर्ण) - आर्य, द्रविड़, मंगोल और सीरियन का मिश्रण है. सन १९३६ मे डॉ. गुहा ने पुन्हा अनुसन्धान किया. उनके अनुसार भारतीय दो जातियों के है, यानि लंबे सिर वाले और छोटे सिर वाले. पश्चिम मे भी मेडीट्रेनियन के लोग लंबे सिर वाले और अल्पस प्रदेश के लोग छोटे सिर वाले थे. मेडीट्रेनियन लोग यूरोप मे रहते थे और आर्य भाषा बोलते थे, अल्पस एशिया के हिमालय प्रदेश मे रहते थे और आर्य भाषा बोलते थे.
अतएवं, हर प्रकार से यह सिद्ध है की आर्यो की दो जातिया थी, जैसा की वृग्वेद से प्रकट होता है. अतएवं पश्चिम के सिद्धांत की आर्य एक जाती है और उन्होंने हिन्दुस्थान मे आकर दासों और दस्सुओं पर विजय पाई, यह सही नही है." (शूद्रों की खोज. अध्याय - ५)
बौद्ध धम्म के ग्रंथो को ब्राह्मण भिक्षुओँ ने भी लिखा है. सारे संप्रदाय मानते है, भारत मे बुद्ध का धम्म जनतंत्र पर अधिष्टित है, जहा से न्याय, स्वतन्त्र, समता और बंधुभाव की शिक्षा दी जाती है. जाती यह जन्म पर अधिष्टित रही है, बुद्धिपर नही. जिन्होंने बुद्ध को माना है उन्होंने जाती, धर्मगत विचार छोडना चाहिए. भारत मे जब सिद्धार्थ पैदा हुए तो वर्ण, जाती व्यवस्था थी, उनके शिकार सिद्धार्थ भी बने. साक्यसंघ वर्ण व्यवस्था पर निर्भर था, जिनके शिक्षा को भुगतने के लिए सिद्धार्थ को कपिलवस्तु नगरी, माँ-बाप, मित्र, पुत्र और पत्नी भी त्यागना पड़ा. उसके लिए वर्ण व्यवस्था जबाबदार है, इसका सिद्धार्थ को पता था.
सिद्धार्थ ने जंगल मे ज्ञान हासिल करने के लिए काफी प्रयास किया. लेकिन वर्णव्यवस्था को खत्म करने का ज्ञान किसी से भी नही मिला और वे हमेशा असंतुस्ट रहा करते थे, जिसका परिणाम यह हुआ की उन्हें "गया" के जंगल मे अलग से चिंतन करना पड़ा. उन्हें चिंतन से यहसास हो गया था की यह ज्ञान वर्ण व्यवस्था को खत्म करने के लिए पर्याप्त है, उसी समय उन्होंने संतुष्टी हुयी और कल्याणकारी रास्ता बताना सुरु किया, जिसमे सुरु के ५ लोग ब्राह्मण ही थे.
बुद्ध ने ब्राह्मण द्वेष किया होता तो पहले अपने ज्ञान को उन्हें नही बताया होता. वे वर्णव्यवस्था के विरुद्ध थे, ब्राह्मणों के नही. ब्राह्मणों पर बुद्ध ने विश्वास किया की यह लोग उनका धम्म जनता को सही ढंग से समझा सकते है. उन्होंने ब्राह्मण सारिपुत्त को संघ सेनापती नियुक्त किया. ब्राह्मण लोग बुद्ध के नजर मे बुरे होते तो उन्होंने ऐसा नही किया होता.
सिद्धार्थ के भाई, क्षत्रिय, देवदत्त बुद्ध और धम्म के विरुद्ध थे. जिन्होंने आजन्म बुद्ध का विरोध किया था. इसका मतलब यह नही होता की लोग जाती, वर्ण के आधारपर अच्छे या बुरे होते है. बुद्ध के मतानुसार व्यक्ति किसी भी समूह का रहे उनके विचार बदले जा सकते है, इसपर उन्हें पूर्ण विशवास था, जो विश्वास जातिवादी लोगों मे नही होता. बुद्ध के संघ मे ७५ % ब्राह्मण थे, इसका मतलब सभी लोग ईमानदार थे, ऐसा भी नही था. बुद्ध के हयात मे "भो गौतम, अरे गौतम" कहनेवाले भी ब्राह्मण थे जो बुद्ध का अपमान भी करने के लिए प्रयासरत होते थे.
बुद्ध को अपने विचारों पर इतना भरोसा था की चाहे वह कितना भी कपटी और खुन्कार हो उसे समझाया जा सकता है, विचारों से काबू मे लिया जा सकता है. मगर जातिवादी लोग अपने विचारों कों उतने प्रभावी ढंग से नही रख पाते, क्योंकि वे कपटी है. उनके पास ज्ञान के एवज अज्ञान होता है. बुद्ध यह ज्ञानी थे, ज्ञान से अज्ञान पर विजय पाना सम्भब है, इसपर उन्हें महत्तम विश्वास था, इसलिए वे ज्ञान ही बाँटते गए. ज्ञानी व्यक्ति कपटी को भी जल्दी पहचान सकता है तथा उनसे गलती न हो इसके लिए हमेशा जागृत रहता है.
ब्राह्मण जातियों के वजह से महान है और अन्य नही, ऐसा कभी भी बुद्ध ने नही कहा. कोई भी व्यक्ति अपने जाती के भरोसे छोटा या बड़ा नही होता तो अपने विचार तथा आचारों से होता है. हर जाती का व्यक्ति जाती प्रथा पर भरोसा करके ज्ञान को नकारते जा रहा है तो ऐसे लोग चाहे किसी भी समूह के हो वे बौद्ध नही हो सकते. पेरियार रामासामी कहते थे की, ब्राह्मण दिखा तो उन्हें जानसे मार दो, उनके विचार सापों से भी ज्यादा जहरीले होते है, मगर बुद्ध व्यक्ति के विरुद्ध नही थे चाहे वे किसी भी जाती के हो, इसलिए लोग अपने जातिओं के खिलाफ भी आवाज उठाने वाले भिक्खु संघ मे थे. वज्रसुची कों एक ब्राह्मण भिक्खु अश्वघोष ने लिखा है, जहापर जाती,वर्ण, वंश का अभिमान, अज्ञान दूर किया है.
बुद्धी द्वारा बुद्ध ने जातिवादी, वर्णवादी, वंशवादी लोगों को वश मे किया और उनसे अपना उद्धेश पूरा करने के लिए काम करवाया. बुद्ध ने ब्राह्मणों का जनता के कल्याण मे वापर किया जिससे वर्णव्यवस्था चरमरा गयी थी. ब्राह्मणों को हिन्दुधर्म का एक महान शत्रु धम्मधारी बौद्ध ही लगते थे. इस कारण उसमे कुछ गलत लोग भी सम्मिलित हुए और धम्म विचारों मे जहर भी घोल दिया. जहर और अमृत की पहचान करनेवाला ज्ञान जिनके पास है, वे व्यक्ति न ब्राह्मणों के कपट से डरते है और न ब्राहमण जातीय अंगुलिमाल डाकू से डरते है.
कपिलवस्तु से कुछ लोग आए और कहने लगे की हमें संघ मे सम्मलित करे, तो उन्होंने “उपाली” नामक नाई का काम करनेवाले, शुद्र समझे जानेवाले व्यक्ति को पहले संघ दीक्षा दी और उनके बाद क्षत्रिय लोगों को दी थी, उनके पीछे उनका उद्धेश ज्ञान जिसने पहले पाया वह ही गुरु है, चाहे फिर वर्ण व्यवस्था मे उनका दर्जा कोनसा भी क्यों न हो. बुद्ध ने वर्ण व्यवस्था विरहित अपनी “धम्म् व्यवस्था” बनाई थी, जो पूर्णता जनतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष थी.
जाती, वर्ण, वंश के आधार पर किसे भी उंच या नीच समझना और समझाना अनीति तथा गुना भी है. सम्यक सम्बुद्ध और बाबासाहब आंबेडकर यह बुद्धिवादी, ज्ञानवादी लोग थे. ज्ञानी को सम्मान और अज्ञानी को अपमान, ऐसा भी भेदभाव वे नही करते थे. बुद्धी कम ज्यादा रह सकती है मगर उनके विचार स्वार्थ निरपेक्ष यानि अनेक (बहु) जन कल्याणकारी जरुरी है. बेईमान और अज्ञानी लोग हमेशा रहेंगे, उनसे कैसे बर्ताव करे? इसका ज्ञान होना चाहिए. हम अगर उसे देते है तो हमने किसी से भी डरना नही है, कपटी लोग खुद ही डरेंगे.
बुद्ध और बाबासाहब ने अपने संघ-संघटनाओ मे ब्राह्मण लोगों को भी सम्मिलित किया था, इसका मतलब यह नही होता की अन्य लोग नही थे. अपेक्षित व्यवस्था का उद्धेश क्या है? यह महत्वपूर्ण है. उसके अनुकूल अगर कोई कार्य नही करे तो उन्हें बाहर निकलने का रास्ता मिल ही जाएगा. उन्हें निकालने के लिए प्रयास करने की जरूरत नही है. अच्छे लोगों मे बुरे विचारों के लोगों से हमेशा दूर ही भागते है तथा वे बुरे लोगों का अलग ग्रुप बनाते है.
चोरों को संघटन मे स्थान नही है ऐसी बाते लिखने की जरुरत नही. नियम ही ऐसे बनाओ और दिखाओ की वे उसे पढकर ही आपसे और आपके संघटन से दूर चला जाएगा. बाबासाहब ने किसे भी गुमराह करने की कोसिस नही की और न हमने करनी चाहिए. कुछ लोग अपने नाम, सम्पति और इच्छाओ को पूर्ण करने के लिए दूसरों को गुमराह करते आए है. उनके संपर्क मे हम रहे तो हम भी गुम हो सकते है. हम जागृत रहे और औरों को जागृत करे.