Friday, December 14, 2012


बौद्ध धम्म के ग्रंथो को ब्राह्मण भिक्षुओँ ने भी लिखा है. सारे संप्रदाय मानते है, भारत मे बुद्ध का धम्म जनतंत्र पर अधिष्टित है, जहा से न्याय, स्वतन्त्र, समता और बंधुभाव की शिक्षा दी जाती है. जाती यह जन्म पर अधिष्टित रही है, बुद्धिपर नही. जिन्होंने बुद्ध को माना है उन्होंने जाती, धर्मगत विचार छोडना चाहिए. भारत मे जब सिद्धार्थ पैदा हुए तो वर्ण, जाती व्यवस्था थी, उनके शिकार सिद्धार्थ भी बने. साक्यसंघ वर्ण व्यवस्था पर निर्भर था, जिनके शिक्षा को भुगतने के लिए सिद्धार्थ को कपिलवस्तु नगरी, माँ-बाप, मित्र, पुत्र और पत्नी भी त्यागना पड़ा. उसके लिए वर्ण व्यवस्था जबाबदार है, इसका सिद्धार्थ को पता था.

सिद्धार्थ ने जंगल मे ज्ञान हासिल करने के लिए काफी प्रयास किया. लेकिन वर्णव्यवस्था को खत्म करने का ज्ञान किसी से भी नही मिला और वे हमेशा असंतुस्ट रहा करते थे, जिसका परिणाम यह हुआ की उन्हें "गया" के जंगल मे अलग से चिंतन करना पड़ा. उन्हें चिंतन से यहसास हो गया था की यह ज्ञान वर्ण व्यवस्था को खत्म करने के लिए पर्याप्त है, उसी समय उन्होंने संतुष्टी हुयी और कल्याणकारी रास्ता बताना सुरु किया, जिसमे सुरु के ५ लोग ब्राह्मण ही थे.

बुद्ध ने ब्राह्मण द्वेष किया होता तो पहले अपने ज्ञान को उन्हें नही बताया होता. वे वर्णव्यवस्था के विरुद्ध थे, ब्राह्मणों के नही. ब्राह्मणों पर बुद्ध ने विश्वास किया की यह लोग उनका धम्म जनता को सही ढंग से समझा सकते है. उन्होंने ब्राह्मण सारिपुत्त को संघ सेनापती नियुक्त किया. ब्राह्मण लोग बुद्ध के नजर मे बुरे होते तो उन्होंने ऐसा नही किया होता.

सिद्धार्थ के भाई, क्षत्रिय, देवदत्त बुद्ध और धम्म के विरुद्ध थे. जिन्होंने आजन्म बुद्ध का विरोध किया था. इसका मतलब यह नही होता की लोग जाती, वर्ण के आधारपर अच्छे या बुरे होते है. बुद्ध के मतानुसार व्यक्ति किसी भी समूह का रहे उनके विचार बदले जा सकते है, इसपर उन्हें पूर्ण विशवास था, जो विश्वास जातिवादी लोगों मे नही होता. बुद्ध के संघ मे ७५ % ब्राह्मण थे, इसका मतलब सभी लोग ईमानदार थे, ऐसा भी नही था. बुद्ध के हयात मे "भो गौतम, अरे गौतम" कहनेवाले भी ब्राह्मण थे जो बुद्ध का अपमान भी करने के लिए प्रयासरत होते थे.

बुद्ध को अपने विचारों पर इतना भरोसा था की चाहे वह कितना भी कपटी और खुन्कार हो उसे समझाया जा सकता है, विचारों से काबू मे लिया जा सकता है. मगर जातिवादी लोग अपने विचारों कों उतने प्रभावी ढंग से नही रख पाते, क्योंकि वे कपटी है. उनके पास ज्ञान के एवज अज्ञान होता है. बुद्ध यह ज्ञानी थे, ज्ञान से अज्ञान पर विजय पाना सम्भब है, इसपर उन्हें महत्तम विश्वास था, इसलिए वे ज्ञान ही बाँटते गए. ज्ञानी व्यक्ति कपटी को भी जल्दी पहचान सकता है तथा उनसे गलती न हो इसके लिए हमेशा जागृत रहता है.

ब्राह्मण जातियों के वजह से महान है और अन्य नही, ऐसा कभी भी बुद्ध ने नही कहा. कोई भी व्यक्ति अपने जाती के भरोसे छोटा या बड़ा नही होता तो अपने विचार तथा आचारों से होता है. हर जाती का व्यक्ति जाती प्रथा पर भरोसा करके ज्ञान को नकारते जा रहा है तो ऐसे लोग चाहे किसी भी समूह के हो वे बौद्ध नही हो सकते. पेरियार रामासामी कहते थे की, ब्राह्मण दिखा तो उन्हें जानसे मार दो, उनके विचार सापों से भी ज्यादा जहरीले होते है, मगर बुद्ध व्यक्ति के विरुद्ध नही थे चाहे वे किसी भी जाती के हो, इसलिए लोग अपने जातिओं के खिलाफ भी आवाज उठाने वाले भिक्खु संघ मे थे. वज्रसुची कों एक ब्राह्मण भिक्खु अश्वघोष ने लिखा है, जहापर जाती,वर्ण, वंश का अभिमान, अज्ञान दूर किया है.

बुद्धी द्वारा बुद्ध ने जातिवादी, वर्णवादी, वंशवादी लोगों को वश मे किया और उनसे अपना उद्धेश पूरा करने के लिए काम करवाया. बुद्ध ने ब्राह्मणों का जनता के कल्याण मे वापर किया जिससे वर्णव्यवस्था चरमरा गयी थी. ब्राह्मणों को हिन्दुधर्म का एक महान शत्रु धम्मधारी बौद्ध ही लगते थे. इस कारण उसमे कुछ गलत लोग भी सम्मिलित हुए और धम्म विचारों मे जहर भी घोल दिया. जहर और अमृत की पहचान करनेवाला ज्ञान जिनके पास है, वे व्यक्ति न ब्राह्मणों के कपट से डरते है और न ब्राहमण जातीय अंगुलिमाल डाकू से डरते है.

कपिलवस्तु से कुछ लोग आए और कहने लगे की हमें संघ मे सम्मलित करे, तो उन्होंने “उपाली” नामक नाई का काम करनेवाले, शुद्र समझे जानेवाले व्यक्ति को पहले संघ दीक्षा दी और उनके बाद क्षत्रिय लोगों को दी थी, उनके पीछे उनका उद्धेश ज्ञान जिसने पहले पाया वह ही गुरु है, चाहे फिर वर्ण व्यवस्था मे उनका दर्जा कोनसा भी क्यों न हो. बुद्ध ने वर्ण व्यवस्था विरहित अपनी “धम्म् व्यवस्था” बनाई थी, जो पूर्णता जनतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष थी.

जाती, वर्ण, वंश के आधार पर किसे भी उंच या नीच समझना और समझाना अनीति तथा गुना भी है. सम्यक सम्बुद्ध और बाबासाहब आंबेडकर यह बुद्धिवादी, ज्ञानवादी लोग थे. ज्ञानी को सम्मान और अज्ञानी को अपमान, ऐसा भी भेदभाव वे नही करते थे. बुद्धी कम ज्यादा रह सकती है मगर उनके विचार स्वार्थ निरपेक्ष यानि अनेक (बहु) जन कल्याणकारी जरुरी है. बेईमान और अज्ञानी लोग हमेशा रहेंगे, उनसे कैसे बर्ताव करे? इसका ज्ञान होना चाहिए. हम अगर उसे देते है तो हमने किसी से भी डरना नही है, कपटी लोग खुद ही डरेंगे.

बुद्ध और बाबासाहब ने अपने संघ-संघटनाओ मे ब्राह्मण लोगों को भी सम्मिलित किया था, इसका मतलब यह नही होता की अन्य लोग नही थे. अपेक्षित व्यवस्था का उद्धेश क्या है? यह महत्वपूर्ण है. उसके अनुकूल अगर कोई कार्य नही करे तो उन्हें बाहर निकलने का रास्ता मिल ही जाएगा. उन्हें निकालने के लिए प्रयास करने की जरूरत नही है. अच्छे लोगों मे बुरे विचारों के लोगों से हमेशा दूर ही भागते है तथा वे बुरे लोगों का अलग ग्रुप बनाते है.

चोरों को संघटन मे स्थान नही है ऐसी बाते लिखने की जरुरत नही. नियम ही ऐसे बनाओ और दिखाओ की वे उसे पढकर ही आपसे और आपके संघटन से दूर चला जाएगा. बाबासाहब ने किसे भी गुमराह करने की कोसिस नही की और न हमने करनी चाहिए. कुछ लोग अपने नाम, सम्पति और इच्छाओ को पूर्ण करने के लिए दूसरों को गुमराह करते आए है. उनके संपर्क मे हम रहे तो हम भी गुम हो सकते है. हम जागृत रहे और औरों को जागृत करे.
बौद्ध धम्म के ग्रंथो को ब्राह्मण भिक्षुओँ ने भी लिखा है. सारे संप्रदाय मानते है, भारत मे बुद्ध का धम्म जनतंत्र पर अधिष्टित है, जहा से न्याय, स्वतन्त्र, समता और बंधुभाव की शिक्षा दी जाती है. जाती यह जन्म पर अधिष्टित रही है, बुद्धिपर नही. जिन्होंने बुद्ध को माना है उन्होंने जाती, धर्मगत विचार छोडना चाहिए. भारत मे जब सिद्धार्थ पैदा हुए तो वर्ण, जाती व्यवस्था थी, उनके शिकार सिद्धार्थ भी बने. साक्यसंघ वर्ण व्यवस्था पर निर्भर था, जिनके शिक्षा को भुगतने के लिए सिद्धार्थ को कपिलवस्तु नगरी, माँ-बाप, मित्र, पुत्र और पत्नी भी त्यागना पड़ा. उसके लिए वर्ण व्यवस्था जबाबदार है, इसका सिद्धार्थ को पता था.

सिद्धार्थ ने जंगल मे ज्ञान हासिल करने के लिए काफी प्रयास किया. लेकिन वर्णव्यवस्था को खत्म करने का ज्ञान किसी से भी नही मिला और वे हमेशा असंतुस्ट रहा करते थे, जिसका परिणाम यह हुआ की उन्हें "गया" के जंगल मे अलग से चिंतन करना पड़ा. उन्हें चिंतन से यहसास हो गया था की यह ज्ञान वर्ण व्यवस्था को खत्म करने के लिए पर्याप्त है, उसी समय उन्होंने संतुष्टी हुयी और कल्याणकारी रास्ता बताना सुरु किया, जिसमे सुरु के ५ लोग ब्राह्मण ही थे.

बुद्ध ने ब्राह्मण द्वेष किया होता तो पहले अपने ज्ञान को उन्हें नही बताया होता. वे वर्णव्यवस्था के विरुद्ध थे, ब्राह्मणों के नही. ब्राह्मणों पर बुद्ध ने विश्वास किया की यह लोग उनका धम्म जनता को सही ढंग से समझा सकते है. उन्होंने ब्राह्मण सारिपुत्त को संघ सेनापती नियुक्त किया. ब्राह्मण लोग बुद्ध के नजर मे बुरे होते तो उन्होंने ऐसा नही किया होता.

सिद्धार्थ के भाई, क्षत्रिय, देवदत्त बुद्ध और धम्म के विरुद्ध थे. जिन्होंने आजन्म बुद्ध का विरोध किया था. इसका मतलब यह नही होता की लोग जाती, वर्ण के आधारपर अच्छे या बुरे होते है. बुद्ध के मतानुसार व्यक्ति किसी भी समूह का रहे उनके विचार बदले जा सकते है, इसपर उन्हें पूर्ण विशवास था, जो विश्वास जातिवादी लोगों मे नही होता. बुद्ध के संघ मे ७५ % ब्राह्मण थे, इसका मतलब सभी लोग ईमानदार थे, ऐसा भी नही था. बुद्ध के हयात मे "भो गौतम, अरे गौतम" कहनेवाले भी ब्राह्मण थे जो बुद्ध का अपमान भी करने के लिए प्रयासरत होते थे.

बुद्ध को अपने विचारों पर इतना भरोसा था की चाहे वह कितना भी कपटी और खुन्कार हो उसे समझाया जा सकता है, विचारों से काबू मे लिया जा सकता है. मगर जातिवादी लोग अपने विचारों कों उतने प्रभावी ढंग से नही रख पाते, क्योंकि वे कपटी है. उनके पास ज्ञान के एवज अज्ञान होता है. बुद्ध यह ज्ञानी थे, ज्ञान से अज्ञान पर विजय पाना सम्भब है, इसपर उन्हें महत्तम विश्वास था, इसलिए वे ज्ञान ही बाँटते गए. ज्ञानी व्यक्ति कपटी को भी जल्दी पहचान सकता है तथा उनसे गलती न हो इसके लिए हमेशा जागृत रहता है.

ब्राह्मण जातियों के वजह से महान है और अन्य नही, ऐसा कभी भी बुद्ध ने नही कहा. कोई भी व्यक्ति अपने जाती के भरोसे छोटा या बड़ा नही होता तो अपने विचार तथा आचारों से होता है. हर जाती का व्यक्ति जाती प्रथा पर भरोसा करके ज्ञान को नकारते जा रहा है तो ऐसे लोग चाहे किसी भी समूह के हो वे बौद्ध नही हो सकते. पेरियार रामासामी कहते थे की, ब्राह्मण दिखा तो उन्हें जानसे मार दो, उनके विचार सापों से भी ज्यादा जहरीले होते है, मगर बुद्ध व्यक्ति के विरुद्ध नही थे चाहे वे किसी भी जाती के हो, इसलिए लोग अपने जातिओं के खिलाफ भी आवाज उठाने वाले भिक्खु संघ मे थे. वज्रसुची कों एक ब्राह्मण भिक्खु अश्वघोष ने लिखा है, जहापर जाती,वर्ण, वंश का अभिमान, अज्ञान दूर किया है.

बुद्धी द्वारा बुद्ध ने जातिवादी, वर्णवादी, वंशवादी लोगों को वश मे किया और उनसे अपना उद्धेश पूरा करने के लिए काम करवाया. बुद्ध ने ब्राह्मणों का जनता के कल्याण मे वापर किया जिससे वर्णव्यवस्था चरमरा गयी थी. ब्राह्मणों को हिन्दुधर्म का एक महान शत्रु धम्मधारी बौद्ध ही लगते थे. इस कारण उसमे कुछ गलत लोग भी सम्मिलित हुए और धम्म विचारों मे जहर भी घोल दिया. जहर और अमृत की पहचान करनेवाला ज्ञान जिनके पास है, वे व्यक्ति न ब्राह्मणों के कपट से डरते है और न ब्राहमण जातीय अंगुलिमाल डाकू से डरते है.

कपिलवस्तु से कुछ लोग आए और कहने लगे की हमें संघ मे सम्मलित करे, तो उन्होंने “उपाली” नामक नाई का काम करनेवाले, शुद्र समझे जानेवाले व्यक्ति को पहले संघ दीक्षा दी और उनके बाद क्षत्रिय लोगों को दी थी, उनके पीछे उनका उद्धेश ज्ञान जिसने पहले पाया वह ही गुरु है, चाहे फिर वर्ण व्यवस्था मे उनका दर्जा कोनसा भी क्यों न हो. बुद्ध ने वर्ण व्यवस्था विरहित अपनी “धम्म् व्यवस्था” बनाई थी, जो पूर्णता जनतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष थी.

जाती, वर्ण, वंश के आधार पर किसे भी उंच या नीच समझना और समझाना अनीति तथा गुना भी है. सम्यक सम्बुद्ध और बाबासाहब आंबेडकर यह बुद्धिवादी, ज्ञानवादी लोग थे. ज्ञानी को सम्मान और अज्ञानी को अपमान, ऐसा भी भेदभाव वे नही करते थे. बुद्धी कम ज्यादा रह सकती है मगर उनके विचार स्वार्थ निरपेक्ष यानि अनेक (बहु) जन कल्याणकारी जरुरी है. बेईमान और अज्ञानी लोग हमेशा रहेंगे, उनसे कैसे बर्ताव करे? इसका ज्ञान होना चाहिए. हम अगर उसे देते है तो हमने किसी से भी डरना नही है, कपटी लोग खुद ही डरेंगे.

बुद्ध और बाबासाहब ने अपने संघ-संघटनाओ मे ब्राह्मण लोगों को भी सम्मिलित किया था, इसका मतलब यह नही होता की अन्य लोग नही थे. अपेक्षित व्यवस्था का उद्धेश क्या है? यह महत्वपूर्ण है. उसके अनुकूल अगर कोई कार्य नही करे तो उन्हें बाहर निकलने का रास्ता मिल ही जाएगा. उन्हें निकालने के लिए प्रयास करने की जरूरत नही है. अच्छे लोगों मे बुरे विचारों के लोगों से हमेशा दूर ही भागते है तथा वे बुरे लोगों का अलग ग्रुप बनाते है.

चोरों को संघटन मे स्थान नही है ऐसी बाते लिखने की जरुरत नही. नियम ही ऐसे बनाओ और दिखाओ की वे उसे पढकर ही आपसे और आपके संघटन से दूर चला जाएगा. बाबासाहब ने किसे भी गुमराह करने की कोसिस नही की और न हमने करनी चाहिए. कुछ लोग अपने नाम, सम्पति और इच्छाओ को पूर्ण करने के लिए दूसरों को गुमराह करते आए है. उनके संपर्क मे हम रहे तो हम भी गुम हो सकते है. हम जागृत रहे और औरों को जागृत करे.

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